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संस्था का मूल ढाँचा: कक्षाओं का सशक्त संचालन

संस्था का मूल ढाँचा जो एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई है, वह है कक्षाओं का सशक्त संचालन जो निम्नलिखित विशेषताओं में निहित है।
• सुयोग्य, सुनिक्षित एवं कम से कम 5 वर्षों तक के अध्यापन का अनुभव प्राप्त शिक्षक।
• निर्धारित सत्रावधि में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का पूरी कार्यकुशलता के साथ समापन तथा रिवीजन।
• पूर्व निर्धारित साप्ताहिक पाठ्यक्रमों पूरा कर, साप्ताहिक टेस्ट की व्यवस्था तथा प्रगति पत्र से अभिभावक को अवगत कराना।
• ठीक समय से शान्तिपूर्ण, सुव्यवस्थित ढंग से कक्षाओं का चलना तथा प्रत्येक विद्यार्थी के होमवर्क, फेयर रिकार्ड का नियमित जांच होना।
• कक्षाओं में बैठे प्रत्येक विद्यार्थी के एकग्रता का ध्यान रखते हुए समय-समय पर प्रश्न पूछकर बोर्ड पर बुलाकर उनमें सीखने की प्रवृत्ति जागृत करना ।
• कमजोर तथा सामान्य विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विषयवस्तु का हल देने, उन्हें प्रोत्साहित करना तथा स्वाध्याय में अभिरूचि जागृत करना।
. विद्यार्थियों की उपस्थिति पर विशेष ध्यान देना।

शिक्षणत्तर कार्यक्रमों का उद्देश्य

  • * विद्यार्थियों में पाठ्यक्रम की पुस्तकों के साथ-साथ अन्य कार्यक्रमों के प्रति रूचि जागृत करना।
  • * छात्रों की सामूहिक कार्यक्रमों के प्रति रुचि जागृत करना तथा मिलजुल कर जीवन की समस्याओं को सुलझाने की प्रवृत्ति जागृत करना।
  • * छात्र-छात्रओं व शिक्षक के मध्य सम्पर्क बढ़ाना।
  • * बच्चों में छिपी प्रतिभ को खोज निकालना अथवा उबारना।
  • * छात्रों में हीनता की भावना दूर करना।
  • * छात्रों में आपसी सहयोग की भवना का विकास करना।
  • * छात्रों में भौतिक एवं मानिसक विकास को बढ़ावा देना।
  • * छात्रों का आत्म अनुशासन स्वयं पर नियंत्रण, समयबद्धता के महत्व से अवगत करना।
  • * छात्रों में सुन्दरता, सच्चाई, भलाई, साफ-सफाई तथा नियोजित तरीके से कार्य करने के प्रति संवेदनशीलता को विकसित करना।
  • * संस्था यह ध्यान रखती है कि कक्षा समापन के बाद विद्यार्थी पूण संतुष्टि तथा नूतन जानकारी के साथ कक्षा से निकले तथा उत्साह के साथ घर पर गृह-कार्य करें।

विद्यार्थियों की सफलता के मूल में 'अनुशान'

क्या आपको यह सोचकर कभी हैरानी हुई है कि क्यों लोग अपने लक्ष्य पर नहीं पहुँच पाते? वे हमेशा विपरीत और नाजुक स्थितियों में क्या महसूस करते है? ऐसा क्या होता है जो कुछ लोग लगातार सफल होते रहते है, जबकि कुछ लोग लगातार असफल? जीवन में जिसने कोई भी खास मुकाम हसिल किया है वह अनुशासन के बिना नहीं किया, चाहे वह खेलकूद हो, पढ़ाई-लिखाई या व्यापार। विद्यार्थी जीवन भावी मानव जीवन की आधरशिला है। अनुशाासन रूपी इस मानवीय आभूषण को धारण करने के लिए विद्यार्थी जीवन से बढ़कर अन्य अवस्था हो ही नहीं सकती। प्रारम्भ से अनुशासन से बंधा हुआ व्यक्ति ही आदर्श मनुष्य सिद्ध हो सकता है। स्वस्थ वातावरण में सहयोग, सहानुभूति, सहिष्णुता, न्यायप्रियता आदि मानवीय भावनाओं की उत्पति कर विद्यार्थी को अनुशासनहीन होने से बचाया जा सकता हैं। अभिभावकों को हमेशा सजग रहना चाहिए कि विद्यालय में उसकी उपस्थिति क्या है। कक्षाध्यापको व शिक्षकों की रिपोर्ट क्या है। आज सी0बी0एस0ई0 बोर्ड के अच्छे विद्यालयों की भी कमी दिखाती है। योग्य व चरित्रवान शिक्षक ही छात्रों की अतिरिक्त शक्ति को अध्ययन व रचनात्मक कार्यों की ओर मोड़कर अनुशासित बना सकते है। अल्पज्ञान, बहुभाषी, असत्य संवाद, लोभ इत्यादि से अनुशान व मार्यदाएँ स्थापित नहीं की जा सकती। संस्था के समस्त शिक्षक समय के पाबन्द रहकर अपने अथक श्रम से, स्वयं से सजग रहते हुए निरन्तर नूतन ज्ञान से विद्यार्थियों को सिंचित करते हुए आदर्श अनुशासन स्थापित करने में काययाब हुए है। जिस पर संस्था परिवार को गर्व हैं, और वही संस्था के विद्यार्थियों की भारी सफलता का मूल मंत्र है। आज बहुत से विद्यालय खुल रहे है। लेकिल उनका कोई अस्तित्व नहीं है, ना ही बच्चों को प्रति कोई जिमेदारी है। आप को अपने बच्चों को उन्हीं स्कूलों में Admission कराना चाहिए जो स्कुल रजिस्टर्ड हो जो स्कूल रजिस्टर्ड होगा वह जीमेदार होगा। पॉयनियर सैनिक स्कूल जापानी तकनीकी See (देखो), Think (सोचो) Do (करो) के द्वारा पढ़ाया जाता है। आप अभिभावक एक बार पॉयनियर सैनिक स्कूल में आकर देखें फिर निणर्य ले कि या आप को अपने बच्चे का Admission कराना चाहिए या नहीं। आज रजिस्टर्ड C.B.S.C. बोर्ड स्कूलों की बहुत कमी है।